स्वास्थ्य-चिकित्सा >> कैंसर का आनंद कैंसर का आनंदअनूप कुमार
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कैंसर के खिलाफ इंसानी जंग की निर्देशिका...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
"कैसी
विडंबना थी कि जब मौत अपना मुँह
खोले मेरे सामने खड़ी थी मैं वास्तव में पहली बार
जिंदगी जीने की शुरुआत कर रहा था।"
खोले मेरे सामने खड़ी थी मैं वास्तव में पहली बार
जिंदगी जीने की शुरुआत कर रहा था।"
अनूप कुमार को जब कैंसर होने की जानकारी मिली, उनका रोग आखिरी चरण में पहुँच चुका था। डॉक्टरों का कहना था कि उनकी जिंदगी सिर्फ चार महीने की रह गयी है। इसके बाद शुरु हुआ जज्बाती और शारीरिक तकलीफों का एक लंबा सिलसिला जिसने इस किताब को जन्म दिया। लेकिन इसमें कैंसर की पीड़ा से भी ज्यादा इंसान के मन और शरीर के संकल्प और ताकत की कहानी भी दर्ज है। एक सच्ची कहानी जो बताती है कि इंसान चाहे तो निश्चित मृत्यु को भी जीवन में बदल सकता है।
कहावत है कि कैंसर के सच्चे विशेषज्ञ खुद कैंसर के मरीज होते हैं। वे ऐसी बातें बता सकते हैं जिनकी जानकारी डॉक्टरों से नहीं मिल सकती। क्या कोई डॉक्टर बता सकता है कि अपनी जिंदगी में कैंसर की मौजूदगी स्वीकार करने के तरीके क्या-क्या हो सकते हैं? या डर पर जीत कैसे हासिल की जा सकती है? आखिर केमोथेरेपी के दुष्प्रभाव कौन-कौन से होते हैं? क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए? कैंसर का आनंद इन सवालों के जबाव देने के साथ-साथ बहुत कुछ और भी बताती है।
कैंसर के खिलाफ इंसानी जंग की निर्देशिका के रूप में लिखी गई यह किताब पाठकों के सामने एक सात सूत्रीय संघर्ष योजना रखती है। इन सूत्रों का बुनियादी आधार यह है कि मौत से बचने की कोशिश डॉक्टर के साथ-साथ मरीज के लिए भी करना जरूरी है।
इस पुस्तक के लेखक अनूप कुमार ने दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफंस कालेज से आणुविक भौतिकी में एम एस सी करने के बाद अपना ज्यादातर वक्त विज्ञापन एजेंसियों में काम करते हुए गुजारा। आजकल वे भारत की प्रमुख औद्योगिक संस्था के कारपोरेट कम्यूनिकेशंस विभाग के प्रमुख हैं।
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